कोई ख़ास बात नहीं हुई ।
इक रस्म था जो निभा गएँ,
तो ये ज़िन्दगी तो नहीं हुई !!!
कभी उनको हमसे था उन्स सा,
फिर हमें भी उनकी तलब लगी,
तो ये आशिक़ी तो नहीं हुई !!!
वो हज़ार शिकवा था दिल ही में,
जो ज़बां पे भी न आ सकें...
इक कशमकश में जो चुप रहें,
तो ये सादगी तो नहीं हुई !!!
था बोझ सर में तो झुक गया,
ये दिल भी थक के जो रुक गया,
था दर वो किसका नहीं पता,
यूँ कहीं पे जा के जो रुक गएँ,
तो ये बंदगी तो नहीं हुई !!!
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