शाम से आँख में नमीं सी है
आज फिर आप की कमी सी है
दफ़्न कर दो हमें के साँस मिले
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है
आज फिर …
वक़्त रहता नही कहीं टिककर
इसकी आदत भी आदमी सी है
आज फिर …
कोई रिश्ता नही रहा फिर भी
एक तसलीम लाजमी सी है
आज फिर …
आज फिर आप की कमी सी है
दफ़्न कर दो हमें के साँस मिले
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है
आज फिर …
वक़्त रहता नही कहीं टिककर
इसकी आदत भी आदमी सी है
आज फिर …
कोई रिश्ता नही रहा फिर भी
एक तसलीम लाजमी सी है
आज फिर …
No comments:
Post a Comment